सेंसरशिप: क्या है, क्यों होती है और हमसे कैसे जुड़ी है?
सेंसरशिप का मतलब है कोई भी चीज़—लेख, वीडियो, तस्वीर या विचार—जो सरकार, कंपनियों या कभी‑कभी खुद लोगों द्वारा ब्लॉक या संशोधित की जाती है। अक्सर ये ‘नूडल’ जैसा लग सकता है, लेकिन असल में इसका असर हमारे रोज़मर्रा के फैसलों में भी पड़ता है। तो आइए, इस मुद्दे को समझें और देखें कि हमारे आसपास क्या‑क्या हो रहा है।
सेंसरशिप के मुख्य प्रकार
सेंसरशिप दो बड़े वर्गों में बांटी जा सकती है: सामान्य (पब्लिक) सेंसरशिप और डिजिटल (ऑनलाइन) सेंसरशिप। सामान्य सेंसरशिप में टीवी, रेडियो, अखबार आदि पर प्रतिबंध लगाते हैं। डिजिटल सेंसरशिप में वेबसाइट, सोशल मीडिया या ऐप्स को ब्लॉक किया जाता है। दोनों में अक्सर वही कारण होते हैं—राजनीतिक माहौल, सामाजिक मूल्य, या सुरक्षा।
उदाहरण के तौर पर, फिल्मों में कुछ दृश्यों को हटाना, या सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट को हटा देना, दोनों ही सेंसरशिप के रूप हैं। कभी‑कभी यह राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक शांति के नाम पर किया जाता है, लेकिन अक्सर यह अलग‑अलग विचारधाराओं को दबाने का मतल़ब भी रखता है।
भारत में प्रमुख सेंसरशिप केस
भारत में सेंसरशिप की कहानी पुरानी है, लेकिन डिजिटल युग ने इसे नई ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है। कुछ यादगार केस देखें:
- फ़िल्म ‘कविता’ पर कुछ दृश्य हटाए गए क्योंकि उन्हें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला कहा गया।
- बॉलीवुड अभिनेता के इंस्टाग्राम पोस्ट को हटाया गया जब उसने एक विवादित राजनीति पर टिप्पणी की।
- किसी सरकारी वेबसाइट पर PDF फ़ाइल को ब्लॉक किया गया क्योंकि उसमें आधिकारिक दस्तावेज़ में ‘ग़लत’ आंकड़े थे।
इन सब में एक बात साफ़ है—सेंसरशिप का लक्ष्य अक्सर राय को सीमित करना या सामाजिक बवाल को रोकना होता है। लेकिन इससे अभिव्यक्ति की आज़ादी कमजोर पड़ती है और जनता को पूरी सच्चाई नहीं मिल पाती।
अगर आप ऑनलाइन कुछ पढ़ रहे हैं और अचानक पेज लोड नहीं हो रहा, तो शायद वह चीज़ सेंसरशिप के कारण ब्लॉक हो गई है। ऐसे में VPN या प्रॉक्सी का इस्तेमाल करके आप कुछ हद तक कंटेंट देख सकते हैं, लेकिन याद रखें—देश के कानूनों का सम्मान करना भी ज़रूरी है।
सेंसरशिप को लेकर कई NGOs और पत्रकार संघ लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। वे चाहते हैं कि नियम स्पष्ट हों और अत्यधिक प्रतिबंध हटाए जाएँ। इस दिशा में कुछ राज्यों ने ‘फ्रीिश' एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर' जारी किया है, जिससे कुछ साइटों को फिर से खुला गया है।
तो, आप एक साधारण यूज़र के तौर पर क्या कर सकते हैं? सबसे पहले, स्रोतों को वैरिफ़ाई करें—एक ही खबर को कई जगह पढ़ें। दूसरा, अगर आपको लगता है कि किसी पोस्ट को कभी‑कभी या बिना कारण हटाया गया है, तो आप उस प्लेटफ़ॉर्म के रिव्यू पोर्टल पर फीडबैक दे सकते हैं। और सबसे अहम, अपने अधिकारों के बारे में जानकारी रखें—किसी भी देश के संविधान में अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार लिखा होता है।
सेंसरशिप का मुद्दा जटिल है, लेकिन इसे समझना जरूरी है क्योंकि यह सीधे हमारी सोच, बातचीत और चुनावी निर्णय को प्रभावित करता है। आशा है कि इस लेख ने आपको इस विषय पर एक स्पष्ट, साधारण और उपयोगी तस्वीर दी होगी। अब जब आप कोई कंटेंट देखें, तो सोचें—क्या यह पूरी तरह से खुले तौर पर प्रस्तुत किया गया है, या कहीं पर कटा‑फटा है?