शोज़ग्रेन सिंड्रोम के बाद वीनस विलियम्स ने बदली डाइट: लंबी जद्दोजहद और वापसी की कहानी

शोज़ग्रेन सिंड्रोम के बाद वीनस विलियम्स ने बदली डाइट: लंबी जद्दोजहद और वापसी की कहानी

सात ग्रैंड स्लैम खिताब और 49 सिंगल्स टाइटल—इतनी बड़ी उपलब्धियों के बावजूद वीनस विलियम्स को एक दुर्लभ, लाइलाज ऑटोइम्यून बीमारी ने कोर्ट से बाहर बैठने पर मजबूर कर दिया। 2011 में जब उन्हें शोज़ग्रेन सिंड्रोम का आधिकारिक निदान मिला, तब तक वे सालों तक थकान, सांस फूलने और ड्राईनेस से जूझ चुकी थीं। उन्होंने अपनी डाइट से लेकर ट्रेनिंग तक सब कुछ बदल दिया—और फिर भी हार नहीं मानी।

वीनस ने बताया कि लक्षण 2004 में शुरू हुए। “चाहे जितनी मेहनत कर लूं, मैं थक जाती थी, सांस फूल जाती थी और कभी फिट महसूस नहीं करती थी। यह बहुत परेशान करने वाला था,” उन्होंने Prevention.com को दिए इंटरव्यू में कहा। हालत इतनी बिगड़ी कि वे प्रो टेनिस भी नहीं खेल पा रही थीं। “मुझे सही निदान मिलने से पहले प्रोफेशनल टेनिस मुझसे छिन गया,” उन्होंने कहा। 2011 में US Open से उनका हटना इसी मोड़ की सबसे कठोर घटना थी।

बीमारी की देर से पहचान और उसका असर

शोज़ग्रेन सिंड्रोम अमेरिका में करीब 40 लाख लोगों को प्रभावित करता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भ्रमित कर देता है—आंसू और लार बनाने वाली ग्रंथियां सबसे पहले निशाने पर आती हैं, इसलिए आंखों और मुंह में सूखापन आम है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह एक सिस्टमेटिक बीमारी है, जो जोड़ों, फेफड़ों, गुर्दों, नसों और पाचन तंत्र तक को प्रभावित कर सकती है।

वीनस की मुश्किलें इसी व्यापक असर की वजह से बढ़ती गईं। उनका कहना है कि बिना निदान के जीना “ऐसा था जैसे सांस लेना भी असहज हो।” थकान इतनी ज्यादा कि ट्रेनिंग के बाद रिकवरी नहीं होती, और मैच की तीव्रता तक पहुंचना तो दूर, रोजमर्रा की ऊर्जा जुटाना भी भारी पड़ता।

ऑटोइम्यून बीमारियों में देर से निदान एक आम कहानी है। वीनस ने भी लगभग सात साल डॉक्टरों के चक्कर लगाए, पर शुरुआत में रिपोर्टें “नॉर्मल” आती रहीं। इसी वजह से कई मरीज गलत निदान के साथ जीते रहते हैं, या तब डॉक्टर तक पहुंचते हैं जब हालत बहुत बिगड़ चुकी होती है। विशेषज्ञ समय पर जांच की सलाह देते हैं—खासकर तब जब थकान महीनों तक बनी रहे, आंख-मुंह में सूखापन बढ़े, जोड़ों में सूजन-जलन हो, और मेहनत के बावजूद फिटनेस गिरती रहे।

शोज़ग्रेन के निदान में अक्सर खून की जांच (ANA, SSA/Ro, SSB/La एंटीबॉडी), आंखों का शिर्मर टेस्ट और कभी-कभी लार ग्रंथि की बायोप्सी शामिल होती है। सही पहचान होने के बाद दवाओं, जीवनशैली और डाइट—इन तीनों का संतुलित प्लान लंबे समय तक फर्क दिखाता है।

  • आम लक्षण: आंखों/मुंह का सूखापन, जोड़ों में दर्द और सूजन, लगातार थकान, मांसपेशियों में जकड़न, हाथ-पैरों में झनझनाहट।
  • खेल पर असर: एरोबिक क्षमता में गिरावट, रिकवरी स्लो, चोट का जोखिम बढ़ना, प्रतियोगिता शेड्यूल को संभालना मुश्किल।
  • मानसिक दबाव: प्रदर्शन में गिरावट के बाद आत्मविश्वास डगमगाना, अनिश्चितता और बार-बार मेडिकल अपॉइंटमेंट्स का तनाव।

वीनस ने हार नहीं मानी। 2011 के बाद भी वे टूर पर लौटीं, बड़े मंचों पर प्रतिस्पर्धी रहीं और अपने अनुभवों को साझा किया ताकि दूसरे मरीज समय रहते मदद लें।

डाइट, ट्रेनिंग और मैनेजमेंट: वीनस का प्लेबुक

डाइट, ट्रेनिंग और मैनेजमेंट: वीनस का प्लेबुक

निदान के बाद सबसे बड़ा बदलाव उनकी प्लेट में आया। शुरुआती वर्षों में उन्होंने कड़ाई से प्लांट-बेस्ड—कई दौर में रॉ वेगन—अपनाया, ताकि सूजन घटे और ऊर्जा वापस आए। बाद में उन्होंने इसे लचीला बनाया, लेकिन फोकस वही रहा: सूजन कम करने वाले, पोषक और आसानी से पचने वाले भोजन। सितंबर 2024 में Harper's Bazaar से बातचीत में उन्होंने कहा, “मैं काफी समय से खुद जैसी महसूस नहीं कर रही थी... मुझे लगा कि मेहनत कर लूंगी तो सब ठीक हो जाएगा, लेकिन समझ में आया—यह अब जिंदगी का हिस्सा है। स्वीकार करना मुश्किल था।”

रिपोर्ट्स बताती हैं कि उनके ये बदलाव बहन सेरेना को भी प्रभावित करते रहे। हालांकि हर व्यक्ति का शरीर अलग तरह से प्रतिक्रिया देता है, फिर भी ऑटोइम्यून स्थितियों में कुछ डाइट सिद्धांत बार-बार मददगार दिखते हैं—जैसे प्रोसेस्ड शुगर कम करना, अच्छी फैट्स और रंग-बिरंगी सब्जियों-फलों को बढ़ाना, और हाइड्रेशन पर कड़ी नजर रखना।

  • प्लेट की रीढ़: पत्तेदार सब्जियां, रंगीन सब्जियां-फल, साबुत अनाज, दालें-लेग्यूम्स, और अगर सहन हो तो नट्स-सीड्स।
  • अच्छी फैट्स: ओमेगा-3 के स्रोत (जैसे अलसी, अखरोट) सूजन घटाने में मददगार माने जाते हैं।
  • प्रोटीन प्रबंधन: प्लांट प्रोटीन को फैलाकर लेना ताकि पाचन पर दबाव न पड़े और रिकवरी बेहतर रहे।
  • ट्रिगर पर नजर: कई मरीज डेयरी, ग्लूटेन या हाई-शुगर फूड्स से लक्षण बढ़ते देखते हैं—वीनस ने भी ट्रिगर आइटम्स सीमित किए।
  • हाइड्रेशन और माउथ-आइ केयर: सूखापन कम करने के लिए पानी, इलेक्ट्रोलाइट्स और शुगर-फ्री लॉजेंज/आर्टिफिशियल टियर्स जैसी सहूलियतें रूटीन का हिस्सा बनीं।
  • मसाले और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स: हल्दी, अदरक जैसे एंटी-इन्फ्लेमेटरी मसालों के साथ B12, D और आयरन स्टेटस की मॉनिटरिंग—खासकर प्लांट-बेस्ड खाने वालों के लिए।

खाने के साथ ट्रेनिंग भी नई सोच के साथ डिजाइन हुई। हाई-इंटेंसिटी वर्कआउट के बाद रिकवरी के लिए ज्यादा वक्त, नींद को प्राथमिकता, और पीरियडाइजेशन—यानी लोड और रेस्ट के बीच ठोस संतुलन। लंबे टूर्नामेंट शेड्यूल में उन्होंने मैच और ट्रेवल के बीच “माइक्रो-रेस्ट” की विंडो बनानी सीखीं।

  • रिकवरी टूलकिट: नींद 7-9 घंटे, एक्टिव रिकवरी (हल्की वॉक/मोबिलिटी), ब्रीदिंग एक्सरसाइज, और जरूरत पड़ने पर फिजियोथेरेपी।
  • मेडिकल प्लान: डॉक्टर की सलाह से इम्यून-मॉड्यूलेटिंग दवाएं, ड्राईनेस मैनेजमेंट और नियमित ब्लडवर्क—ताकि ट्रेनिंग लोड दवाओं के साथ टकराए नहीं।
  • मैच-डे स्ट्रैटेजी: ऊर्जा को स्पाइक्स के बजाय स्थिर रखना—छोटे-छोटे मील्स, इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस और सन/विंड एक्सपोजर से आंखों का बचाव।

इस अनुशासन का असर नतीजों में दिखा। निदान के बाद भी वीनस बड़े टूर्नामेंटों में प्रतिस्पर्धी रहीं और 2017 में उच्च स्तर के मंच पर बेहतरीन फॉर्म में नजर आईं। ओलंपिक में उनका रिकॉर्ड आज भी महिला टेनिस में सबसे सजे हुए करियर में गिना जाता है।

उनकी कहानी सिर्फ एक स्टार एथलीट की वापसी नहीं, हेल्थकेयर सिस्टम को आईना भी है। सालों तक “सब ठीक” बताने वाली रिपोर्टें, फिर एक दिन सही टेस्ट और पहेली सुलझना—यह अनुभव लाखों मरीजों का है। डॉक्टर भी कहते हैं—अगर महीनों से थकान, ड्राईनेस, जोड़ों का दर्द और रिकवरी में दिक्कत बनी है तो आक्रामक होकर सवाल पूछें, जांचें दोहराएं और रुमेटोलॉजिस्ट से अपॉइंटमेंट लें।

वीनस आज अपनी बीमारी पर खुलकर बात करती हैं—ताकि लोग देर न करें। उनकी आवाज मरीजों को यह समझने में मदद करती है कि मैनेजमेंट संभव है: सही इलाज, डाइट, रेस्ट और सपोर्ट सिस्टम के साथ करियर और पैशन दोनों जिंदा रखे जा सकते हैं। और सबसे अहम—खुद की सुनना सीखें। शरीर जब कहता है “रुको”, तो रणनीति बदलना कमजोरी नहीं, स्मार्टनेस है।

टेनिस की सुपरस्टार हों या आम पेशेवर—क्रॉनिक बीमारियों के साथ जीवन चलाना रोज़ का मैनेजमेंट है। वीनस ने दिखाया कि ढर्रा बदलना, स्वीकार करना और निरंतरता—इन तीनों से रास्ता निकलता है। आज भी वे कोर्ट पर हैं, और हर मैच के साथ यह याद दिलाती हैं कि बीमारी कहानी का अंत नहीं, रणनीति बदलने का संकेत है।

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