मोहम्मद यूनुस – गरीबी से लड़ने वाले माइक्रोफाइनेंस के जनक
क्या आपने कभी सोचा है कि छोटे‑छोटे ऋण से लाखों की ज़िन्दगी बदल सकती है? यही सोच से बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस ने माइक्रोफाइनेंस का विचार जन्म दिया। एक साधारण शिक्षक से लेकर नोबेल शांति पुरस्कार जीतने तक उनका सफ़र बहुत ही प्रेरणादायक है।
1970 के दशक में बांग्लादेश में गरीबी इतना गहरा था कि लोग बैंक से ऋण नहीं ले पाते थे। यूनुस ने इस समस्या को पहचानते हुए ग्रामीण महिलाओं को छोटे‑छोटे कर्ज़ देने की पहल की। उन्होंने सिर्फ कुछ सौ रुपये की छोटी रकम दी, लेकिन इस रकम से उन महिलाओं ने छोटे व्यापार शुरू किए – सिलाई, सिलाई मशीनें, दही बनाना आदि। धीरे‑धीरे ये छोटे व्यापार बड़े होते गये और परिवार की आय में सुधार हुआ।
ग्रामीन बैंक की शुरुआत और उसके सिद्धांत
यूनुस ने 1983 में ग्रामीन बैंक स्थापित किया। इस बैंक की खास बात यह थी कि इसकी सदस्यता केवल बिना किसी गारंटी के होती थी। यानी, आप बिना जमानत के भी उधार ले सकते थे, बस अपने व्यापार की योजना प्रस्तुत करनी होती थी। इस मॉडल ने बहुत सारे लोगन को आत्मनिर्भर बनाया और बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव लाया।
ग्रामीन बैंक का प्रमुख सिद्धांत तीन शब्दों में है – “सहयोग, भरोसा और निरंतरता”। बैंक ने सिर्फ कर्ज़ नहीं दिया, बल्कि ऋण लेने वाले को प्रशिक्षण, बाजार की जानकारी और मनोवैज्ञानिक समर्थन भी दिया। इससे लोग न केवल कर्ज़ चुकाते रहे बल्कि अपने व्यवसाय को विकसित भी करते रहे।
उपलब्धियां और व्यापक प्रभाव
ग्रामीन बैंक के मॉडल ने विश्व भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया। अब लगभग 100 से अधिक देशों में माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं यूनुस के सिद्धांत अपनाती हैं। 2006 में उन्हें नॉबेल शांति पुरस्कार मिला, जो इस बात का प्रमाण है कि उनका काम सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव लाने वाला है।
उनके काम की वजह से कई देशों में गरीबी घटाने की नीति में बदलाव आया। सरकारें और निजी संस्थाएँ अब छोटे‑छोटे उद्यमियों को समर्थन देने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही हैं। इससे रोजगार के अवसर बढ़े और महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार आया।
आज भी मोहम्मद यूनुस सक्रिय रूप से शिक्षा और सामाजिक उद्यमिता के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि हर व्यक्ति को अपने सपनों को साकार करने का मौका मिले, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। अगर आप भी इस दिशा में कुछ करना चाहते हैं तो स्थानीय माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं या सामाजिक उद्यमिता कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं।
मोहम्मद यूनुस की कहानी हमें सिखाती है कि छोटे‑छोटे कदम भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। उनका मिशन आज भी जारी है और भविष्य में भी नई पीढ़ी को प्रेरित करेगा।