पीएल की पृष्ठभूमि और मुख्य दावे
25 सितंबर 2025 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को एक सार्वजनिक हित याचिका (पीएल) पर नोटिस भेजा, जिसमें किसान महापंचायत ने पीला मटर आयात को लेकर सरकारी नीति को चुनौती दी है। याचिका का मुख्य आरोप है कि आयातित पीला मटर आयात की कीमत भारत में उपलब्ध मौसमी दालों की तुलना में बहुत कम है, जिससे घरेलू किसानों को आर्थिक क्षति हो रही है। इस याचिका का प्रतिनिधित्व प्रसिद्ध वकील प्रशांत भुशन ने किया, जिन्होंने कहा कि इस नीति से देश के धान्य उत्पादकों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
किसान महापंचायत के अनुसार, आयातित पीला मटर की लागत लगभग 35 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि घरेलू स्तर पर तूर दाल, मूंग दाल और उरद दाल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 85 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित किया गया है। इस तरह की कीमत अंतराल के कारण भारतीय किसानों को बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी उत्पादित दालें बाजार में बेच पाना मुश्किल हो रहा है।

नीति‑विवाद के पीछे आर्थिक और स्वास्थ्य पहलू
पीला मटर (Pisum sativum) भारतीय कृषि में पारंपरिक रूप से नहीं उगाया जाता। यह मुख्यतः कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में पशुधन के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन देशों में पीले मटर को मानव भोजन के रूप में कम महत्व दिया जाता है, फिर भी भारत में इसे भारतीय दालों के विकल्प के रूप में बढ़ती मात्रा में आयात किया जा रहा है। इस बदलते उपयोग ने कई स्तरों पर टकराव पैदा किया है—एक ओर उपभोक्ता की कीमत में राहत, तो दूसरी ओर किसानों की आय में गिरावट।
कई सरकारी विशेषज्ञ निकायों ने इस आयात नीति को असंगत माना है। मार्च 2025 में कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) ने रिपोर्ट दी, जिसमें कहा गया कि पीला मटर आयात को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि तूर, अरहर और मसूर जैसी प्रमुख दालों पर आयात शुल्क बढ़ाया जाए, ताकि घरेलू बाजार में संतुलन बना रहे। इसके अतिरिक्त, सितंबर 2025 में नीति आयोग ने एक विस्तृत अध्ययन प्रकाशित किया, जिसमें बताया गया कि भारत को दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए घरेलू धान्य उत्पादन को बढ़ावा देना आवश्यक है। इस रिपोर्ट में आयात निर्भरता कम करने और खेती के योग्य क्षेत्रों का विस्तार करने के दिशानिर्देश दिए गए हैं।
याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि केंद्र द्वारा 31 मई को जारी किया गया नोटिफिकेशन, जो पीला मटर आयात को मुक्त कर देता है, उसे निरस्त किया जाए। साथ ही, आयातित पीले मटर को भारतीय एमएसपी के बराबर या उससे अधिक कीमत पर बेचने के निर्देश भी मांगे गए हैं। प्रशांत भुशन ने अदालत को बताया कि पीले मटर की अत्यधिक सस्ताई ने न केवल किसानों की आय घटाई है, बल्कि कई ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आत्महत्या जैसी गंभीर सामाजिक समस्याओं को भी उभारा है।
सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशीय बेंच—जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस उज्जल भूयन और जस्टिस एनके सिंह—ने सुनवाई के दौरान कई चिंताएँ व्यक्त कीं। बेंच ने कहा कि आयात नीति को लेकर कोई भी निर्णय उपभोक्ता को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए, जबकि किसानों की समस्याओं को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। उन्होंने प्रशांत भुशन से अनुरोध किया कि वे यह जांचें कि वर्तमान में देश में धान्य उत्पादन की मात्रा बाजार की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है या नहीं।
स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं पर भी सवाल उठे। आयातित पीले मटर का मानव उपभोग सीमित है, और कई अध्ययनों में इसे बड़े पैमाने पर खाने से स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की रिपोर्टें मिली हैं। प्रशांत भुशन ने इस बात को उजागर किया कि घरेलू दालों की तुलना में पीले मटर में पोषण तत्वों का संतुलन अलग है, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि इस स्थिति ने किसानों के तनाव को बढ़ाया है और ग्रामीण इलाकों में मनोवैज्ञानिक समस्याओं को भी उजागर किया है।
इन सब बिंदुओं को देखते हुए, न्यायालय ने सरकार को एक औपचारिक नोटिस भेजा और कहा कि जवाब देने के बाद मामला फिर से सुनवाई के लिये निर्धारित किया जाएगा। यह कदम भारत की कृषि नीति, विशेषकर दालों के आयात नियमन और घरेलू उत्पादन के बीच संतुलन स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है। मामले की आगे की सुनवाई से न केवल किसानों के हितों की रक्षा होगी, बल्कि उपभोक्ताओं को दीर्घकालिक कीमत स्थिरता और खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकती है।