जब डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने फ‑1 और जे‑1 छात्र वीज़ा को 4 साल की निश्चित अवधि में बदलने का प्रस्ताव रखा, तो 2024 में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे 4.2 लाख से अधिक भारतीय छात्रों के लिए अनिश्चितता का नया दौर शुरू हो सकता है। यह प्रस्ताव अगस्त 2025 में व्हाइट हाउस की समीक्षा पास कर चुका है और जल्द ही सार्वजनिक परामर्श चरण में कदम रखने वाला है।
मौजूदा "ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस" प्रणाली का सार
आज तक फ‑1 और जे‑1 वीज़ा धारकों को "ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस" (D/S) के तहत प्रवेश मिलता है। इसका मतलब है कि छात्र अपनी I‑20 या DS‑2019 में लिखे हुए कोर्स की समाप्ति तक, चाहे वह दो साल हो या पाँच साल, वैध रूप से रह सकते हैं। इस लचीलेपन ने कई पीएच.डी. और रिसर्च‑बेस्ड प्रोग्राम को बिना वीज़ा की चिंता के आगे बढ़ाया।
लेकिन इस खुले ढाँचे ने मतदाता और नीति निर्माताओं को कभी‑कभी असुरक्षित महसूस कराया, क्योंकि अनिर्धारित अवधि में विदेशियों की अनुपस्थिति को ट्रैक करना मुश्किल था।
प्रस्तावित नई प्रणाली के मुख्य बिंदु
फरवरी 2025 में फ़ेडरल रजिस्टर में प्रकाशित डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी के ड्राफ्ट के अनुसार:
- छात्र को केवल I‑20 या DS‑2019 पर दर्शाए गए कार्यक्रम समाप्ति तिथि तक, अधिकतम 4 वर्ष, प्रवेश मिलेगा।
- प्रोग्राम समाप्ति के बाद अतिरिक्त 30 दिन की सीम्यावधि होगी, जिसके बाद देश छोड़ना अनिवार्य है।
- यदि पढ़ाई 4 वर्ष से आगे बढ़ती है, तो छात्र को USCIS के पास फॉर्म I‑539 के माध्यम से विस्तार (EOS) के लिए आवेदन करना पड़ेगा।
- विस्तार अनुमोदन नहीं मिलने पर बिना वैध स्थिति के रहने पर अनधिकृत आव्रजन माना जाएगा, जिससे भविष्य में ग्रेन कार्ड, वर्क वीज़ा आदि के लिए कठिनाइयाँ हो सकती हैं।
यह बदलाव न केवल समय‑सीमा को कड़ा करेगा, बल्कि प्रशासनिक बोझ को भी बढ़ा देगा – दोनों पक्ष, छात्र और विश्वविद्यालय, को लगातार रीन्यूअल की तैयारी करनी पड़ेगी।
भारतीय छात्रों पर संभावित प्रभाव
भारत से आने वाले छात्र अमेरिकी उच्च शिक्षा के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय वर्ग में हैं। उनकी संख्या 2024 में 4.20 लाख तक पहुंच गई थी, जिसमें कई लोग दो‑तीन साल के मास्टर प्रोग्राम, और पाँच‑सात साल के पीएच.डी. एवं पोस्ट‑डॉक्टोरल रिसर्च में जुटे हैं।
डॉ. अनिल शर्मा, जो कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी में बायो‑इंफॉर्मेटिक्स पीएच.डी. कर रहे हैं, ने बताया: "हमारे प्रोजेक्ट में लैब उपकरण की उपलब्धता और फंडिंग के कारण अक्सर थिसिस की समय‑सीमा धँस जाती है। अगर चार साल की सीमा हार्ड सेट हो, तो हमें बीच‑बीच में वीज़ा रिन्यूअल के कारण रिसर्च ब्रेक लेना पड़ेगा, जो डेटा लॉस का कारण बन सकता है।"
सुधीर पांडे, एक MBA छात्र, ने कहा: "वर्तमान में मैं इंटर्नशिप के लिए OPT की तैयारी कर रहा हूँ। अगर 4‑वर्ष की सीमा मेरे कोर्स की समाप्ति से पहले ही खत्म हो जाती है, तो मेरी करियर प्लानिंग पूरी तरह बाधित हो जाएगी।"
संक्षेप में, दो‑तीन साल की मास्टर डिग्री वाले छात्रों के लिए असर सीमित रहेगा, परंतु पाँच‑सात साल के शोध‑आधारित पाठ्यक्रमों वाले छात्रों को हर साल वीज़ा विस्तार के लिए फॉर्म I‑539 भरना पड़ेगा, जिससे वित्तीय और मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ेगा।

अमेरिकी विश्वविद्यालयों और संगठनों की प्रतिक्रियाएँ
येल यूनिवर्सिटी के ऑफिस ऑफ़ इंटर्नैशनल स्टूडेंट्स एंड स्कॉलर्स (OISS) ने 28 अगस्त 2025 को एक बयान जारी करते हुए कहा: "प्रस्ताव में ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस को हटाने के अलावा अन्य बदलाव भी शामिल हैं, परन्तु अभी तक उन विवरणों का खुलासा नहीं हुआ है। हमारी प्राथमिक चिंता विद्यार्थियों की शैक्षणिक निरंतरता और संस्थानों की वित्तीय स्थिरता है।"
अमेरिकी इंटर्नैशनल एजुकेशन एसोसिएशन (IIEA) ने भी कहा कि स्थायी वीज़ा मॉडल से विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय छात्रों की आय में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि कई संभावित छात्रों अब अमेरिकी शिक्षा को अपने दीर्घकालिक करियर की दिशा में जोखिम मान सकते हैं।
भर्ती विशेषज्ञों के अनुसार, यदि नई नीति लागू हो जाती है, तो भारतीय छात्रों में से 10‑15 प्रतिशत अन्य देशों (कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी) की ओर रुख कर सकते हैं, जहाँ अधिक लचीला वीज़ा माहौल है। यह सिर्फ भारतीय छात्रों तक सीमित नहीं, बल्कि सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रवाह को पुनः स्वरूपित कर सकता है।
भविष्य के कदम और सार्वजनिक परामर्श
नई प्रणाली का अंतिम रूप अभी तय नहीं हुआ है। सार्वजनिक परामर्श चरण में विश्वविद्यालय, छात्र संगठनों, व कानूनी फर्मों को अपने सुझाव देने का मौका मिलेगा। इस अवधि में संभावित संशोधन में दो‑तीन साल के बाद एक्सटेंशन का स्वचालित ट्रैक, या "ड्यूल‑इंटेंट" वीज़ा की संभावना शामिल हो सकती है, जिससे छात्र पढ़ाई के साथ साथ स्थायी निवास की दिशा में भी आगे बढ़ सकेंगे।
एक ओर, भारत सरकार ने भी अपने छात्रों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है और अमेरिकी अधिकारियों के साथ संवाद स्थापित करने की इच्छा जताई है। दूसरी ओर, यू.एस. कांग्रेस के कुछ सदस्य इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रतिस्पर्धा के परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं।
अब देखना यह है कि सार्वजनिक टिप्पणी के बाद नीति में क्या समायोजन होंगे, और कैसे अमेरिकी विश्वविद्यालय अपने भर्ती रणनीति को पुनः तैयार करेंगे।

मुख्य तथ्य
- प्रस्तावित नई प्रणाली: फ‑1/जे‑1 वीज़ा → अधिकतम 4 वर्ष + 30 दिन
- प्रस्ताव को अगस्त 2025 में व्हाइट हाउस ने मंजूरी दी
- विस्तार के लिए फॉर्म I‑539 को USCIS में दाखिल करना पड़ेगा
- भारत से 4.2 लाख+ छात्र अमेरिकी संस्थानों में पढ़ रहे हैं
- येल OISS और IIEA ने संभावित नकारात्मक प्रभावों पर चिंता जताई
Frequently Asked Questions
नया वीज़ा नियम कब लागू होगा?
अंतिम नियम का निर्धारण सार्वजनिक परामर्श के बाद किया जाएगा। अनुमानित तौर पर 2026 की पहली छमाही में लागू हो सकता है, परंतु सटीक तिथि अभी तय नहीं हुई है।
अगर मेरा प्रोग्राम 4 साल से अधिक चल जाए तो क्या करना होगा?
छात्र को USCIS के पास फॉर्म I‑539 भरकर वीज़ा विस्तार (EOS) के लिए आवेदन करना होगा। यह आवेदन वर्तमान वैध अवधि समाप्त होने से पहले जमा करना आवश्यक है, नहीं तो अनधिकृत स्थिति में रहने का जोखिम रहेगा।
क्या भारतीय छात्रों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने से रोक सकता है?
नयी नीति के कारण कुछ छात्र वैकल्पिक देशों को चुन सकते हैं, लेकिन वर्तमान में पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है। विश्वविद्यालयों की डिस्क्रीशन और छात्र की आगे की योजना इस निर्णय को प्रभावित करेगी।
येल यूनिवर्सिटी ने इस प्रस्ताव पर क्या कहा?
येल के ऑफिस ऑफ़ इंटर्नैशनल स्टूडेंट्स एंड स्कॉलर्स ने कहा कि प्रस्ताव में ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस को हटाने के अलावा अतिरिक्त बदलाव भी हैं, लेकिन उन बदलावों के विवरण अभी स्पष्ट नहीं हुए हैं। उन्होंने छात्र की शैक्षणिक निरंतरता के लिए लचीलापन मांगने की आशा जताई।
क्या इस नई नीति से अमेरिकी विश्वविद्यालयों की वित्तीय आय घटेगी?
संभावित है। अंतरराष्ट्रीय छात्रों की ट्यूशन फीस और खर्च अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों के राजस्व का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। अगर छात्र संख्या में कमी आती है, तो इन संस्थानों की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ सकता है।
subhashree mohapatra
अक्तूबर 6, 2025 AT 01:45विज़ा नियमों में लगातार बदलाव छात्रों की भविष्य की योजना में खालियान पैदा कर देते हैं। सरकार‑की इच्छाशक्ति स्पष्ट है, लेकिन अस्थिर नीति‑फ्रेमवर्क किसी को भी असहज कर सकता है। चार साल की सीमा बेकार नहीं, पर यह फॉर्म‑I‑539 की बॉलिंग को अनिवार्य बना देता है, जिससे प्रशासनिक बोझ बढ़ता है। इस प्रक्रिया में कई छात्र अनावश्यक फॉर्म‑फिलिंग में फँस जाएंगे। अगर कोई प्रोजेक्ट पाँच साल तक चलना चाहता है, तो हर साल नवीनीकरण का तनाव उनके शोध में बाधा बन सकता है। इसके अलावा, 30‑दिन की ग्रेस पिरियड भी बहुत कम है; कई बार एयरलाइन टिकट बुकिंग या ट्रांसिट की कठिनाइयाँ होती हैं। कुल मिलाकर, यह नियम छात्रों के लिए असुरक्षा का माहौल बनाता है।