मरणोपरांत कमाई क्या है? समझिए उत्तराधिकार और पोस्टमॉर्टेम इनकम
जब कोई व्यक्ति चला जाता है, तो उसके पास बची कुछ चीज़ें या कुछ आय रह जाती है। इन्हें आमतौर पर मरणोपरांत कमाई कहा जाता है। इस टैग में हम देखेंगे कि ये कमाई कैसे आती है, कौन‑से कानूनी कदम उठाने पड़ते हैं और भारत में हाल ही में किन‑किन खबरों ने इस विषय को हाइलाइट किया है।
कानूनी प्रक्रिया और जरूरी दस्तावेज़
मरणोपरांत कमाई मिलने के लिए सबसे पहला कदम है वसीयत या वारिसी प्रमाणपत्र बनवाना। अगर वसीयत नहीं है, तो भारत में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम या संबंधित धर्म के कानून लागू होते हैं। वारिस को निकटतम नजदीकी रिश्तेदारों की सूची, मृतक की मृत्यु प्रमाण पत्र और बैंक खातों की विवरणी जैसी चीज़ें पेश करनी होती हैं।
बैंक खाते, फिक्स्ड डिपॉज़िट, म्यूचुअल फंड या पेंशन जैसी आय के स्रोतों को ट्रांसफर करने के लिए बैंकों को सुरक्षा प्रमाणपत्र (No Objection Certificate) चाहिए। अगर मृतक ने कोई लॉटरी या गेम जीत रखा है, तो लॉटरी एजेंसी से भी क्लेम फॉर्म भरना पड़ता है।
रियल लाइफ़ स्टोरी: लॉटरी जीत और पोस्टमॉर्टेम इनकम
जन सेवा केंद्र पर प्रकाशित एक खबर के अनुसार, पंजाब के एक सामान्य ग्रामीण ने केवल 6 रुपये की लॉटरी टिकेट खरीद कर करोड़ों की जीत हासिल कर ली। बाद में जब वह व्यक्ति अनजाने में दुर्घटना में चला गया, तो उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवार को वही इनकम मिली। इस केस ने दिखाया कि लॉटरी जीत भी मरणोपरांत कमाई बन सकती है, बशर्ते सही दस्तावेज़ और क्लेम प्रक्रिया पूरी हो।
इसी तरह कई बार ऐसे केस होते हैं जहाँ मृतक ने स्टॉक्स या रियल एस्टेट में निवेश किया होता है। उनके वारिस को शेयर ट्रांसफ़र फॉर्म या प्रॉपर्टी डीड़ की जरूरत पड़ती है। अगर एस्टेट में बकाया कर या ऋण है, तो उसे पहले सुलझाना ज़रूरी है, नहीं तो इनकम पर टैक्स या लियेन लग सकता है।
ध्यान रखें, मरणोपरांत कमाई मिलने में समय लग सकता है। सरकारी प्रोसेस अक्सर धीमी होती है, इसलिए वकील या वित्तीय सलाहकार की मदद लेना फायदेमंद रहता है। वे दस्तावेज़ तैयार करने, टैक्स इम्पैक्ट समझने और सही बैंकिंग प्रक्रिया को तेज़ करने में मदद करेंगे।
संक्षेप में, चाहे वह लॉटरी जीत हो, बैंक इंट्रेस्ट, रेएंटल इनकम या कोई भी पोस्टमॉर्टेम आय, सही कानूनी कदम और दस्तावेज़ के बिना इसे हासिल करना कठिन है। इसलिए वारिसों को शुरुआती रूप में इन चीज़ों को संभालना चाहिए, ताकि किसी भी देरी या कानूनी झंझट से बचा जा सके।