महिला प्रतिनिधित्व – क्यों जरूरी है और कैसे बढ़ेगी सहभागिता?

क्या आप कभी सोचे हैं कि हमारे समाज में महिलाओं की आवाज़ कितनी जगह लेती है? राजनीति, खबरों, फिल्मों या खेल में जब हम महिला नेता या कलाकार देखते हैं, तो हमें लगेगा कि बदलाव आ रहा है। लेकिन असल में महिला प्रतिनिधित्व कहाँ तक पहुंचा है, कौन‑सी बाधाएँ अभी बाकी हैं, और हम क्या कर सकते हैं, ये सवाल अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। इस लेख में हम इन पहलुओं को आसान भाषा में समझेंगे, ताकि आप भी इस चर्चा में अपना योगदान दे सकें।

राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व: आँकड़े और वास्तविकता

अभी भी संसद में महिलाओं का प्रतिशत 30% से कम है। कई राज्य विधायकों में यह संख्या 20‑25% के आसपास रहती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सामाजिक मान्यताएँ, वित्तीय संसाधनों की कमी और पार्टी के निर्णय‑प्रक्रिया में महिला उम्मीदवारों को अक्सर पीछे रखा जाता है। फिर भी, कुछ राज्यों में महिला आरक्षण के कारण महिला विधायकों की संख्या बढ़ी है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में महिला सीटों को सुरक्षित करके महिलाओं को मंच मिला है।

अगर आप सोच रहे हैं कि महिलाओं को राजनीति में रुचि क्यों नहीं दिखती, तो एक बात याद रखें – उन्होंने अक्सर घर और कामकाज के बीच झटका भरा संतुलन बनाया है। इस कारण कई महिलाएँ राजनीतिक करियर को जोखिम भरा मानती हैं। लेकिन जब एक महिला नेता विकास कार्य, शिक्षा या स्वास्थ्य क्षेत्र में परिवर्तन लाती है, तो वह अपने समुदाय में बड़े बदलाव की प्रेरणा बनती है।

मीडिया और एंटरटेनमेंट में महिला प्रतिनिधित्व

समाचार पत्र, टेलीविजन और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों में महिलाओं की भागीदारी अभी भी कम है। प्रमुख समाचार चैनलों में मुख्य एंकर या विश्लेषक के रूप में महिलाओं का प्रतिशत 25% के आसपास है। विज्ञापन में भी अक्सर महिलाओं को साइड किरदार या प्रोडक्ट की उपभोक्ता के रूप में दिखाया जाता है, न कि निर्णय‑निर्माता के रूप में। इससे दर्शकों की धारणा पर असर पड़ता है – लोग सोचते हैं कि शक्ति मुख्य रूप से पुरुषों के हाथों में है।

फिल्म और वेब सीरीज़ में हाल ही में परिवर्तन आया है। ‘डेड्रास’ जैसे शो में महिलाओं को न केवल मुख्य भूमिका में दिखाया गया, बल्कि कहानी के निर्णय‑बिंदुओं पर भी उनका हाथ रहा। ऐसी सामग्री दर्शकों को यह समझाने में मदद करती है कि महिलाएँ भी निर्णय‑लेने में सक्षम हैं।

सिर्फ़ निराशा नहीं, बल्कि समाधान भी है। मीडिया हाउसों को चाहिए कि वे महिला जर्नलिस्ट, रिपोर्टर और प्रोड्यूसर को प्रमोट करें। विशेषतः ग्रामीण और छोटे शहरों की महिलाओं को लेकर ख़ास कार्यक्रमों की शुरुआत से कई नई आवाज़ें सामने आएँगी।

तो, आप क्या कर सकते हैं? पहली बात, अपने आसपास की महिलाओं की कहानियों को शेयर करें – चाहे वह स्थानीय स्वयंसेविका हो या छात्रा। दूसरा, चुनाव में महिला उम्मीदवारों को वोट देकर समर्थन दें। तीसरा, सोशल मीडिया पर महिलाओं की सफलताओं को हाइलाइट करके चर्चा में लाएँ। छोटे‑छोटे कदम मिलकर बड़ा परिवर्तन लाते हैं।

अंत में यह कहा जा सकता है कि महिला प्रतिनिधित्व सिर्फ़ अंक नहीं, बल्कि समाज के हर हिस्से में समान अवसर की नींव है। जब महिलाएँ अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझें और उनका प्रयोग करें, तो देश का विकास भी तेज़ी से होगा। आइए, हम सब मिलकर इस बदलाव को आगे बढ़ाएँ।

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वायनाड उपचुनाव के लिए उम्मीदवार निर्धारित करने में अभी समय है। सीपीआई नेता एनी राजा ने बताया कि वामपंथी समूह (एलडीएफ) के सदस्य होने के नाते उम्मीदवार का चयन पार्टी करेगी। राजा ने कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा की उम्मीदवारी को सराहा और संसद में अधिक महिला प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर जोर दिया।

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