जब आप बैंक से लोन लेते हैं या बचत खाते में पैसे जमाते हैं, तो आपको हिसाब‑किताब में एक प्रतिशत दिखता है – वही ब्याज दर है। यह प्रतिशत आपके पैसे पर मिलने वाला फायदा या देना पड़ने वाला खर्च तय करता है। इसलिए रेट में छोटे‑छोटे बदलाव भी आपके बजट को बड़ा बदल सकते हैं।
ब्याज दरें कई वजह से बदलती हैं। सबसे बड़ी भूमिका भारत में RBI (रिज़र्व बैंक) की नीति दर की होती है। जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंक भी अपना लोन ब्याज बढ़ाते हैं, क्योंकि उन्हें दिहे गए पैसों पर ज्यादा खर्च उठाना पड़ता है। दूसरी तरफ, बचत खाता या फिक्स्ड डिपॉज़िट की रेट आमतौर पर बाजार की तरलता और प्रतिस्पर्धा से तय होती है।
बैंक अपनी खुद की लागत, लाभ और जोखिम को भी जोड़ते हैं। जैसे अगर किसी व्यक्ति की क्रेडिट स्कोर अच्छी नहीं है, तो उसे हाई‑इंट्रेस्ट लोन मिल सकता है। वहीं, बड़े ग्राहक या लंबे समय के लिए जमा करने वाले लोगों को अक्सर बेहतर रेट मिलते हैं।
अगर आप लोन ले रहे हैं, तो रेट कम करने के लिए कुछ आसान कदम उठा सकते हैं:
बचत या फिक्स्ड डिपॉज़िट में निवेश करने से पहले ये बात देखें:
सिर्फ रेट ही नहीं, बल्कि लोन की टर्म, फिएस्चुरेटी, और प्रोसेसिंग फीस को भी देखना जरूरी है। छोटा रेट बड़ा लग सकता है अगर फीस ज्यादा हो।
आजकल कई फिनटेक ऐप भी रेट की अलर्ट और रिफाइनेंस विकल्प देते हैं। अगर आपका मौजूदा लोन रेट हाई है, तो इन ऐप्स की मदद से जल्दी से नया ऑफर मिल सकता है।
आखिर में, ब्याज दर एक ऐसा टूल है जिसे समझ कर इस्तेमाल किया जा सकता है। सही जानकारी और थोड़ा समय लगाकर आप पाते हैं कि कब लोन लेना है, कब बचत बढ़ानी है और कब रिफाइनेंस करना है। बस थोड़ा ध्यान रखें, मार्केट की खबरें पढ़ें और अपने वित्तीय लक्ष्य के हिसाब से सबसे बेहतर रेट चुनें।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी हालिया एफओएमसी बैठक में प्रमुख उधारी दर को 5.25% से 5.5% की वर्तमान सीमा पर बनाए रखा। हालांकि तुरंत कोई दर बदलाव नहीं किया गया, लेकिन केंद्रीय बैंक ने 2024 के अंत तक कई दर कटौतियां लागू करने की संभावना का संकेत दिया। फेडरल रिजर्व अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने 2% मुद्रास्फीति लक्ष्य की ओर निरंतर प्रगति की आवश्यकता पर जोर दिया।