दिल्ली में बादल बीजने का दूसरा प्रयास: AQI 300 के ऊपर, बारिश का कोई असर नहीं

दिल्ली में बादल बीजने का दूसरा प्रयास: AQI 300 के ऊपर, बारिश का कोई असर नहीं

दिल्ली की हवा अभी भी जहर बरसा रही है — और सरकार बादलों को बीजकर बारिश का इंतजार कर रही है। 28 अक्टूबर, 2025 को दिल्ली सरकार और IIT कानपुर ने दिल्ली के वायु प्रदूषण के खिलाफ अपना दूसरा बादल बीजने का प्रयास किया। इस बार विमान मेरठ से उड़ा, और केखड़ा, बुरारी, उत्तर करोल बाग और मयूर विहार जैसे शहर के बाहरी इलाकों में आठ फ्लेयर्स छोड़े गए। हर फ्लेयर 2 से 2.5 किलोग्राम वजन का था। लेकिन यह सब निर्माण की तरह था — दिखावा। हवा में नमी कम थी, बारिश नहीं हुई, और AQI अभी भी 300 के ऊपर है।

बादल बीजने का विज्ञान और असली हकीकत

बादल बीजने का विचार दिल्ली के लिए नया नहीं है। लेकिन इस बार एक बड़ी समस्या सामने आई — बादलों में नमी केवल 15-20% थी। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, इसके लिए कम से कम 50-60% नमी होनी चाहिए। मनींद्र अग्रवाल, IIT कानपुर के डायरेक्टर, ने कहा: "आज के बादलों में बहुत कम नमी है। ऐसी हालत में बारिश पैदा करना लगभग असंभव है।" चीन, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के अनुभवों से पता चलता है कि बादल बीजने की सफलता नमी के साथ-साथ हवा की गति और बादलों की ऊंचाई पर भी निर्भर करती है। जब ये शर्तें नहीं होतीं, तो यह प्रक्रिया वास्तव में PM2.5 को बढ़ा सकती है — जिससे प्रदूषण और बढ़ जाता है।

नोएडा में बारिश? विशेषज्ञों का सवाल

दिल्ली सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में दो बारिश की घटनाएं दर्ज की गईं। लेकिन क्या यह बादल बीजने का असर था? नहीं। सुनील धैया, दिल्ली-आधारित सोच बैंक Envirocatalysts के संस्थापक, ने कहा: "स्मॉग टावर, स्मॉग गन या बादल बीजने बस एक दिखावा हैं। ये अस्थायी रूप से दृश्यता बढ़ा सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक कोई फायदा नहीं।" वास्तविक समाधान तो वाहनों, बिजली संयंत्रों और निर्माण गतिविधियों जैसे स्रोतों को कम करना है। बारिश का असर नहीं, बल्कि गंदगी का बहाव बंद करना है।

सरकार की योजना: अगले 10 दिनों में 9-10 और प्रयास

फिर भी, मंजिंदर सिंह सिरसा, दिल्ली के मंत्री, ने कहा: "हम उम्मीद करते हैं कि IIT कानपुर सफल होगा। अगर होगा, तो हम फरवरी तक बादल बीजने की लंबी योजना बनाएंगे।" अगला प्रयास 29 अक्टूबर को होने वाला है। सरकार ने अगले 10 दिनों में 9-10 और ट्रायल्स की घोषणा की है। लेकिन ये सब क्या कर रही है? बस वक्त बर्बाद कर रही है। जब तक रोड पर डीजल कारें, फैक्ट्रियां और खेतों में खलिहान जलाने पर रोक नहीं लगेगी, तब तक बादल बीजने का कोई मतलब नहीं।

राजनीति भी धुएं में डूब गई

यह मुद्दा अब सिर्फ विज्ञान नहीं, बल्कि राजनीति का भी हिस्सा बन गया है। भाजपा ने पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह किसानों को फसल के बचे हुए अवशेष जलाने के लिए मजबूर कर रही है। वहीं, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार पर आरोप लगाया कि वह AQI नंबरों को बदल रही है — वेदर स्टेशन के आसपास अत्यधिक जल-स्प्रिंकलर लगाकर। यह आरोप-प्रत्यारोप एक बड़ी बात को छुपा रहा है: कोई भी सरकार असली समाधान के लिए तैयार नहीं है।

क्या बादल बीजने कभी काम करेगा?

हां — अगर शर्तें सही हों। लेकिन दिल्ली की अक्टूबर की हवा उसके लिए बहुत सूखी है। बादल बीजने की विधि तब काम करती है जब बादल बन चुके हों, नमी भरी हो, और हवा उचित दिशा में चल रही हो। दिल्ली में अक्टूबर में ऐसा कभी नहीं होता। यह एक बहाना है — एक तकनीकी बहाना जिससे सरकार अपनी असफलता को छुपाती है। अगर आप बारिश की उम्मीद कर रहे हैं, तो आपको निर्माण के लिए नहीं, बल्कि जल और वायु के लिए नियम बनाने की जरूरत है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

बादल बीजने से दिल्ली में बारिश कैसे होती है?

बादल बीजने में सिल्वर आयोडाइड या नमक के कण बादलों में छिड़के जाते हैं, जिससे जलवाष्प बूंदों में बदलता है। लेकिन इसके लिए बादलों में कम से कम 50-60% नमी होनी चाहिए। दिल्ली में अक्टूबर में नमी 15-20% ही होती है, जो इस प्रक्रिया के लिए पर्याप्त नहीं है।

क्या बादल बीजने से PM2.5 बढ़ सकता है?

हां, अगर बादलों में नमी कम हो तो बीजे गए कण वायु में तैरते रहते हैं और PM2.5 स्तर बढ़ा सकते हैं। चीन और अमेरिका के अध्ययनों में यह पाया गया है कि अनुकूल नहीं होने पर बादल बीजना वास्तविक रूप से प्रदूषण बढ़ाता है।

दिल्ली में वास्तविक वायु प्रदूषण के क्या कारण हैं?

दिल्ली का 40% प्रदूषण वाहनों से, 25% निर्माण गतिविधियों से, 20% फसल के बचे हुए अवशेष जलाने से और 15% उद्योगों से आता है। बारिश या स्मॉग टावर इन स्रोतों को नहीं रोक सकते। इन्हें नियंत्रित करना ही एकमात्र समाधान है।

IIT कानपुर का बादल बीजने का प्रयोग कितना प्रभावी है?

IIT कानपुर के अध्ययनों में बादल बीजने की सफलता केवल उन दिनों हुई है जब नमी 60% से अधिक थी — जो दिल्ली में सिर्फ जुलाई-अगस्त में होता है। अक्टूबर में यह तकनीक विफल रही है। इसका उपयोग अभी केवल अनुसंधान के लिए है, न कि समाधान के लिए।

क्या दिल्ली में बारिश की उम्मीद करना बेकार है?

हां, अक्टूबर के अंत तक दिल्ली में बारिश की कोई प्राकृतिक उम्मीद नहीं है। यह मौसमी घटना है। बादल बीजने का असर भी इसी कारण नगण्य है। लंबी अवधि के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए वाहनों को बंद करना, निर्माण धूल पर नियंत्रण और खेतों में जलाने पर प्रतिबंध जरूरी है।

राजनीतिक आरोप क्यों बढ़ रहे हैं?

क्योंकि सरकारें असली समाधान नहीं कर रहीं। भाजपा पंजाब को दोष देती है, आम आदमी पार्टी दिल्ली को, और कांग्रेस दोनों को। लेकिन वास्तविक जिम्मेदारी उन सभी की है जो नियमों को लागू नहीं करते। यह एक बहाना है जिससे जनता का ध्यान वास्तविक समस्याओं से भटकाया जा रहा है।

8 Comments

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    Sinu Borah

    अक्तूबर 29, 2025 AT 05:08

    अरे भाई, बादल बीजने का जो ड्रामा हो रहा है, वो तो बिल्कुल बेकार का है। जब तक डीजल कारें, बिजली के चिमनियां, और खेतों में खलिहान जलाने पर कोई रोक नहीं लगेगी, तब तक ये सब नाटक ही रहेगा। बारिश नहीं हो रही तो बादल बीजने का इंतजार क्यों कर रहे हो? ये तो बस दिखावा है, जैसे बाप बेटे को डांटते हुए बोले - 'मैंने तुझे बताया था ना!' और फिर खुद घर का बर्तन तोड़ दे।

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    Sujit Yadav

    अक्तूबर 30, 2025 AT 06:06

    मुझे आश्चर्य है कि इतने बुद्धिमान वैज्ञानिकों को इतना बेकार का प्रयोग करने की अनुमति दी जा रही है। बादल बीजने का विज्ञान तो एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभी तक अनुसंधान के चरण में है, और यहां इसे एक राजनीतिक दिखावे के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह विज्ञान की अवहेलना है। एक अध्ययन के अनुसार, इस प्रक्रिया के लिए नमी का स्तर 60% से ऊपर होना चाहिए, जो दिल्ली में अक्टूबर में लगभग शून्य है। इसका अर्थ है कि यह एक विज्ञान-विरोधी अपराध है।

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    Kairavi Behera

    अक्तूबर 30, 2025 AT 11:04

    दोस्तों, बस इतना समझ लो - बारिश नहीं हो रही है, तो बादल बीजने से क्या होगा? ये सब तो बस दिमाग भटकाने की कोशिश है। असली काम तो ये है कि आप घर से शुरू करें: कार बंद करें, प्लास्टिक न फेंकें, बिजली बचाएं। एक छोटी सी बदलाव से भी बहुत फर्क पड़ सकता है। बादल बीजने की जगह, अगर आप अपने बगीचे में एक पेड़ लगा दें, तो वो ज्यादा असर करेगा। छोटे कदम, बड़ा असर।

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    Aakash Parekh

    अक्तूबर 30, 2025 AT 21:22

    अरे यार, इतना लंबा पोस्ट पढ़ने के बाद भी मुझे लगा कि कोई नया बात नहीं है। बादल बीजने का जो बहाना है, वो तो पिछले 5 साल से चल रहा है। बस नया नाम दे दिया और फिर से ट्रायल कर रहे हैं। जब तक गाड़ियां चल रही हैं, फैक्ट्रियां धुआं छोड़ रही हैं, तब तक ये सब बेकार की बातें हैं। अब बस थक गया हूं।

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    Sagar Bhagwat

    अक्तूबर 31, 2025 AT 21:45

    अरे भाई, मैं तो इस बार बादल बीजने के बारे में हंस ही गया। क्या आपने सुना है कि अमेरिका में भी बादल बीजने का ट्रायल हुआ था? और फिर बारिश नहीं हुई तो लोगों ने कहा - 'अरे, ये तो बस एक नाटक है!' लेकिन अब यहां भी वही बात हो रही है। बस अब नया नाम दे दिया है - 'वायु शुद्धि प्रयोग'। असली बात तो ये है कि हम सब बस बाहर बैठे हैं, और आसमान की बारिश का इंतजार कर रहे हैं।

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    Jitender Rautela

    नवंबर 1, 2025 AT 17:47

    ये सब लोग जो बादल बीजने के बारे में बात कर रहे हैं, वो बिल्कुल नाटक कर रहे हैं। दिल्ली का AQI 300 से ऊपर है और तुम बादल बीजने की बात कर रहे हो? बस एक बार नोएडा जाओ, वहां लोग अपने घरों के बाहर से धुएं को हाथ से धकेल रहे हैं। ये सब तो बस एक शो है। अगर तुम सच में प्रदूषण कम करना चाहते हो, तो पहले अपनी कार बंद कर दो। बादल बीजने के लिए कोई विशेषज्ञ नहीं चाहिए, बस एक बूढ़ा आदमी जो जानता हो कि जलाने के बाद धुएं कैसे उड़ता है।

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    abhishek sharma

    नवंबर 2, 2025 AT 15:21

    क्या तुमने कभी सोचा है कि ये बादल बीजने का पूरा शो किसके लिए है? न तो लोगों के लिए, न ही वातावरण के लिए। ये तो बस एक टीवी शो है, जहां सरकार अपने नाम के लिए लाइव डिस्प्ले कर रही है। जब तक तुम एक बार दिल्ली के बाहर जाकर देख नहीं लेते कि पंजाब के किसान कैसे जला रहे हैं, और दिल्ली के निर्माण कर्मचारी कैसे धूल उड़ा रहे हैं - तब तक तुम बादल बीजने के बारे में बात कर सकते हो। ये तो बस एक दिखावा है, जैसे बीमार आदमी अपने घर में बैठकर दवा की टीवी विज्ञापन देख रहा हो।

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    Surender Sharma

    नवंबर 2, 2025 AT 16:11

    yaar yeh sab kuchh bs time waste hai... bhaari bhaari report likh ke phir bhi kuchh nahi hua. jaise hi bariish aayi toh phir bhi koi kya karega? ye toh sirf government ka drama hai. kisi ne kaha hai ki smog tower se kuchh nahi hota, phir bhi banate hai. jaise koi bimar ho aur doctor ke paas jaye toh usse bola jaye 'bhai ek garam pani pi lo'... phir bhi kuchh nahi hota. same yahan bhi. bhai yeh sab khatam karo, aur phir real solution pe kaam karo. agar nahi toh phir bhi 300 ke upar hi rhega AQI.

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