जब Ahoi Mata, हिंदू धर्म में मातृत्व की प्रतीक देवी का स्मरण किया जाता है, तब इस साल का मुख्य तारा Ahoi Ashtami 2025 सोमवार, 13 अक्टूबर को आएगा। यह तिथि Drik Panchang की गणनाओं के मुताबिक दोपहर 12:24 IST से शुरू होकर 14 अक्टूबर सुबह 11:09 IST तक चलती है, और लाखों माताओं के लिए यह शुभ समय है। यह जानकारी न केवल समय‑सारणी बताती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि इस अनुष्ठान का असर भारतीय घरों में कितना गहरा है।
तिथि और मुहूर्त की विस्तृत जानकारी
आधिकारिक कैलेंडर साइट AstroSage ने भी वही समय बताया: तिथि 12:26 IST पर शुरू, 11:11 IST पर समाप्त, और मुख्य पूजा मुहूर्त शाम 5:53 IST से 7:08 IST तक है। सितारा देखे जाने का उत्तम समय लगभग 6:17 IST के आसपास है, जबकि चाँद का उदय 22:52 IST पर होता है। गहन शोध के बाद Ganeshaspeaks ने इन आंकड़ों को लगभग समान मानते हुए थोड़ा‑बहुत अंतर के साथ कहा कि मुहूर्त 6:07 IST‑7:19 IST तक है। सभी स्रोत एक बात को दोहराते हैं – माँ‑बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए इस शाम को सही समय का चयन अत्यंत आवश्यक है।
श्रेष्ट पूजा विधि और रिवाज़
रिवाज़ की शुरुवात 13 अक्टूबर की सुबह पहले सूरज के उदय से पहले होती है। माताएँ स्नान कर, बिना पानी के पूर्ण व्रत रखती हैं। शाम को, गृहस्थी में दीया जलाकर, कागज़ या दीवार पर Ahoi Ashtami की आकृति – सात बच्चों के साथ माँ – बनायी जाती है। इस दौरान "ॐ अहे मातर्यै नमः" जैसे विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। पश्चात, सितारा देखे जाने के बाद ही व्रत खोलना अनुमति है, चाँद के उदय का इंतजार नहीं करना चाहिए – यही मुख्य बात है जिसे Rudraksha Ratna ने अपने लेख में स्पष्ट किया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक महत्त्व
कहानी के अनुसार, एक बार एक माँ ने अनजाने में अपने अजन्मे बच्चे को नुकसान पहुँचाया था और फिर से ऐसी त्रासदी न दोहराने के लिये उसने यह व्रत करने का संकल्प लिया। तभी से यह परम्परा पूरे भारत में फैल गई। उत्तर भारत में यह त्यौहार कारवा चौथ के चार दिन बाद और दीवाली से लगभग आठ दिन पहले आता है, जिससे इसे "दीवाली सीज़न की शुरुआत" कहा जाता है। दक्षिणी राज्यों में अमांता कैलेंडर के अनुसार यह अष्टमी आश्विन महीने में पड़ता है, फिर भी उत्सव का स्वरूप एक जैसा ही रहता है – मातृ प्रेम की शक्ति को प्रत्यक्ष करना।
समुदायिक भावना और विशेषज्ञों की राय
शहर‑शहर में माताओं का समूह शाम को मिलकर पूजा करता है, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। धर्मशाला के पुजारी श्रीमती श्वेता शर्मा (हिन्दू धर्म शास्त्रों में विशेषज्ञ) ने बताया, "यह व्रत न केवल व्यक्तिगत शुद्धि का माध्यम है, बल्कि सामूहिक ऊर्जा को भी जाग्रत करता है।" वहीं, सामाजिक शोधकर्ता डॉ. राजेन्द्र पांडे (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने कहा, "आधुनिक जीवन में माँ‑बच्चे का तनाव बढ़ा है, ऐसे में यह व्रत एक मानसिक राहत का कारक बनता है।” इस तरह, विभिन्न दृष्टिकोण इस बात की पुष्टि करते हैं कि Ahoi Ashtami सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक स्वास्थ्य का भी एक पहलू है।

आगामी दिनों में क्या देखना है?
व्रत का अंत 13 अक्टूबर की शाम 6:17 IST पर सितारा देखे जाने के बाद होता है, और अगला बड़ा परब 15 अक्टूबर को दीपावली है। कई शहरों में इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, मेले और विशेष मैत्रीपूर्ण भोज आयोजित किए जाएंगे। यदि आप अपनी माँ या बेटी के साथ इस व्रत को मनाना चाहते हैं, तो स्थानीय मंदिर के प्रांगण में आयोजित सामूहिक पूजा में हिस्सा लेना न भूलें – यह एक यादगार अनुभव बन सकता है।
- तिथि: 13‑14 अक्टूबर 2025
- पूजा मुहूर्त: 5:53 IST‑7:08 IST
- सितारा देखे जाने का समय: 6:17 IST
- मुख्य उद्देश्य: बच्चे के स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना
- मुख्य स्थान: पूरे भारत (वशेषतः उत्तर भारत में ज्यादा उत्सव)
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Ahoi Ashtami का व्रत किसे लाभ पहुंचाता है?
मुख्यतः माँ‑बच्चे के बीच बंधन को सुदृढ़ करता है। माताएँ अपने शारीरिक शक्ति और मानसिक शांति के लिए यह व्रत रखती हैं, जबकि बच्चे को दीर्घायु और उज्ज्वल भविष्य की कामना की जाती है।
क्या व्रत के दौरान पानी पिएँ जा सकता है?
नहीं। Ahoi Ashtami का व्रत ‘निरजा’ यानी बिना पानी के किया जाता है। यह पूर्ण शुद्धि की दिशा में एक कदम माना जाता है, इसलिए साखी पानी या किसी भी प्रकार का भोज नहीं लेना चाहिए।
पूजा मुहूर्त के बाद तुरंत भोजन कर सकते हैं?
पूजा मुहूर्त के बाद केवल सितारा दिखने पर ही व्रत खोलना ठीक है। यदि आराम से भोजन करना हो तो अंत में चंदन पानी या हल्का फल‑साबूदाना का सेवन किया जा सकता है।
क्या यह व्रत सभी धर्मों में स्वीकार्य है?
यह मुख्यतः हिंदू धर्म में मान्यता प्राप्त है, विशेषकर उत्तर भारत में। हालांकि, कई बहु-सांस्कृतिक परिवार इस व्रत को सांस्कृतिक उत्सव के रूप में अपनाते हैं, जिससे यह सामाजिक एकता का प्रतीक बन गया है।
दीवाली से पहले इस व्रत का क्या विशेष महत्व है?
Ahoi Ashtami को दीवाली के पहले आठ दिन माना जाता है, इसलिए इसे देन‑दायक ऊर्जा का स्रोत कहा जाता है। माँ‑बच्चे के लिये यह आध्यात्मिक शुद्धी को बढ़ाता है, जिससे दीवाली के उजाले में सुख‑समृद्धि के द्वार खोलते हैं।
Yogitha Priya
अक्तूबर 14, 2025 AT 00:46भाई लोग, Ahoi Ashtami को सिर्फ एक तारीख मत समझो; ये माँ‑बच्चे के बंधन की कड़ी है। अगर आप व्रत नहीं रखोगे तो अपने ही भविष्य में दरार डाल रहे हो। आजकल के डिजिटल खिलाड़ी इस पवित्र रिवाज़ को कम करके दिखाते हैं, यही सच्ची चिंता है। सही समय पर दिपक जलाना, मंत्रों का जाप करना, ये सब ऊर्जा को साफ़ करता है। इसे नज़रअंदाज़ करना तो जैसे आत्मा के दरवाज़े बंद कर देना।