जब एक किसान का 7.5 हॉर्स पावर का ट्यूबवेल महीने में 12,000 रुपये का बिल लगाने लगे, तो ये सिर्फ बिजली का मुद्दा नहीं रह जाता — ये भूखे पेट की बात बन जाती है। इंजीनियर पुष्पेन्द्र सिंह, विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, गोरखपुर के संयोजक, ने 2 नवंबर 2025 को घोषणा की: बिजली कर्मी, किसान और मजदूर मिलकर इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2025 के खिलाफ एक ऐसा संघर्ष शुरू करेंगे, जिसका कोई पहले नहीं देखा। ये बिल, जो बिजली की कीमतों को ‘कॉस्ट रिफ्लेक्टिव टैरिफ’ के नाम पर उछालने वाला है, गरीब खेती और गरीब घरों को बर्बाद कर देगा। और ये सिर्फ गोरखपुर की बात नहीं — ये पूरे देश की आवाज है।
क्यों डर रहे हैं किसान?
एक ट्यूबवेल का बिल 12,000 रुपये? ये संख्या सुनकर लगता है जैसे कोई मजाक कर रहा हो। लेकिन ये मजाक नहीं। इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2025 के तहत, बिजली कंपनियाँ अब बिजली की लागत के आधार पर कीमतें तय करेंगी — जिसका मतलब है, जितना ज्यादा बिजली खपत करेंगे, उतना ही महंगा होगा। गोरखपुर के एक किसान के पास 7.5 HP ट्यूबवेल है — जो जमीन की नमी के लिए जरूरी है। अगर बिजली की दर बढ़ गई, तो इसका महीने का बिल 12,000 रुपये तक पहुँच सकता है। ये उसकी पूरी फसल की कीमत से ज्यादा है। ये बिल नहीं, ये फसल का अंत है।
कर्मचारी और निजीकरण का खेल
ये बिल सिर्फ किसानों के लिए नहीं, बिजली कर्मचारियों के लिए भी एक जीवन-मृत्यु का मुद्दा है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा, "अगर बिजली वितरण निगमों को निजी कंपनियों के हवाले कर दिया जाए, तो नौकरियाँ गायब हो जाएँगी, सेवाएँ बुरी तरह खराब हो जाएँगी, और गरीबों को बिजली तक पहुँच नहीं होगी।" ये डर सिर्फ भाषण नहीं, अनुभव है। 3 नवंबर 2025 को गोरखपुर के सिसवा बाजार में, अवर अभियंता सुजीत चौरसिया के नेतृत्व में बिजली विभाग ने 60 बिजली कनेक्शन काट दिए और दो लाख रुपये वसूले। ये वसूली का अभियान, बिजली विभाग की घाटे को भरने के लिए है — और यही घाटा निजीकरण का बहाना बन रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर तैयारी शुरू
ये आंदोलन सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं। नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स (एनसीसीओईईई) ने देशभर के 27 राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। उन्होंने तय किया: 15 नवंबर 2025 से 25 जनवरी 2026 तक, हर राज्य में किसान, मजदूर और बिजली कर्मचारियों के सम्मेलन होंगे। फिर 30 जनवरी 2026 को दिल्ली में एक विशाल रैली होगी। इससे पहले, 14 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में एक संयुक्त मोर्चे की बैठक होगी — जहाँ किसान संगठन, श्रम संघ और बिजली कर्मचारी अपनी रणनीति तैयार करेंगे।
मीटिंग में निजी घरानों का बढ़ता प्रभुत्व
जब गोरखपुर के किसान बिजली के बिल के बारे में चिंतित हैं, तो मुंबई में डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी मीट 2025 चल रहा है — और वहाँ का एजेंडा स्पष्ट है: बिजली वितरण निगमों का निजीकरण। ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोशिएशन के साथ निजी कंपनियों का गठबंधन खुलकर दिख रहा है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारी विजय कुमार ने कहा, "ये मीटिंग नहीं, एक बिजली कंपनियों की राजनीति है। जहाँ गरीब का हक नहीं, बल्कि शेयरधारक का लाभ है।" ये मीटिंग असल में भविष्य की बिजली की कीमतों को तय कर रही है — और उसमें किसानों की आवाज नहीं है।
अगर सरकार नहीं सुनेगी, तो?
इस आंदोलन का सबसे खतरनाक हिस्सा ये नहीं कि लोग बात कर रहे हैं — बल्कि ये कि वे अब उग्र कार्रवाई की तैयारी कर रहे हैं। पी. रत्नाकर राव, महासचिव ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन, ने स्पष्ट किया: "अगर केंद्र सरकार इस बिल को वापस नहीं लेती, तो हम देशभर में बिजली वितरण को रोकने का फैसला करेंगे।" ये बात सुनकर बिजली विभाग के अधिकारी डर गए हैं। बिजली बंद करना बहुत बड़ा कदम है — लेकिन अगर आपकी फसल नहीं बच सकती, तो आपकी बिजली बंद करने की बात क्यों नहीं की जाए?
क्या ये बिल वाकई जरूरी है?
सरकार का तर्क है कि बिजली निगम घाटे में हैं, इसलिए निजीकरण जरूरी है। लेकिन आँकड़े बताते हैं — 2024-25 में देश के 28 राज्यों के बिजली वितरण निगमों का कुल घाटा 1.7 लाख करोड़ रुपये था। इसमें से 60% घाटा बिजली चोरी, अनियमित बिलिंग और राजनीतिक छूटों के कारण हुआ है। निजीकरण से ये समस्याएँ नहीं दूर होंगी — बल्कि वे और गहरी हो जाएँगी। जब निजी कंपनी लाभ के लिए काम करेगी, तो वह बिजली चोरी का इलाज नहीं, बल्कि गरीबों को बिजली बंद करना चुनेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2025 क्या है?
यह बिल बिजली की कीमतों को बाजार के आधार पर तय करने की अनुमति देता है, जिसे 'कॉस्ट रिफ्लेक्टिव टैरिफ' कहते हैं। इसके तहत, बिजली वितरण निगम अब निजी कंपनियों के साथ भागीदारी कर सकते हैं, और उपभोक्ताओं को बिजली की लागत के आधार पर बिल भरने को कहा जाएगा। यह बिल गरीब और किसानों के लिए बिजली को असहनीय बना देगा।
किसानों को इस बिल से कैसे प्रभावित होगा?
एक 7.5 HP ट्यूबवेल का मासिक बिल 12,000 रुपये तक पहुँच सकता है, जबकि एक किसान की फसल की कुल आय अक्सर इससे कम होती है। इससे खेती असंभव हो जाएगी, और निर्धन किसान बिजली के लिए ऋण लेने के लिए मजबूर होंगे। इसका असर देश की खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ेगा।
बिजली कर्मचारियों की नौकरियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
निजीकरण के बाद कंपनियाँ लाभ के लिए कर्मचारियों की संख्या कम करेंगी। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अनुसार, 50% नौकरियाँ खत्म हो सकती हैं। वर्तमान कर्मचारियों को नए नियमों के तहत नौकरी दी जाएगी, लेकिन उनकी सुरक्षा, भत्ते और सेवाएँ कम हो जाएँगी।
आंदोलन का अगला चरण क्या है?
15 नवंबर 2025 से 25 जनवरी 2026 तक हर राज्य में सम्मेलन होंगे। 14 दिसंबर 2025 को दिल्ली में किसान, कर्मचारी और उपभोक्ताओं की संयुक्त बैठक होगी। 30 जनवरी 2026 को दिल्ली में विशाल रैली होगी। अगर सरकार ने बिल वापस नहीं लिया, तो बिजली वितरण रोकने की योजना है।
क्या इस बिल को रोका जा सकता है?
हाँ। अगर लोगों का संगठित आंदोलन बन जाए, तो सरकार को बिल वापस लेना पड़ सकता है। 2019 में गुजरात में बिजली निजीकरण के विरोध में आंदोलन ने बिल को रोक दिया था। अब भी एक ही रास्ता है — लोगों की आवाज, लोगों का संगठन, और लोगों का एकजुट होना।
Amit Kashyap
नवंबर 4, 2025 AT 21:58ये बिजली बिल तो सिर्फ गरीबों के खिलाफ है! जब तक सरकार निजी कंपनियों को अपना बचाव बनाएगी, तब तक किसान भूखे रहेंगे। अब तो बिजली बंद कर दो, फिर देखो कौन डरता है।
Gopal Mishra
नवंबर 5, 2025 AT 14:22इस आंदोलन को सिर्फ गुस्से से नहीं, बल्कि संगठित तरीके से आगे बढ़ाना होगा। हर गांव में एक समिति बनाओ, हर किसान को बताओ कि ये बिल क्यों खतरनाक है। एक ट्यूबवेल का बिल 12,000 रुपये हो जाएगा? ये नहीं, ये भारत की खाद्य सुरक्षा का अंत है। हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा - न कि बस शिकायत करना।
Swami Saishiva
नवंबर 6, 2025 AT 10:09अरे भाई, बिजली बंद करने की बात कर रहे हो? तो फिर टीवी बंद करो, फोन चार्ज न करो, और बिना बिजली के जीवन जियो। ये सब नाटक है।
Radhakrishna Buddha
नवंबर 6, 2025 AT 10:52अगर बिजली निजी हो गई तो क्या अब रात को चाँद भी बिल भरेंगे? अरे यार, ये सब तो बस एक बड़ी चाल है - जिसमें गरीब को दोष देकर अमीर अपनी जेब भर रहे हैं।
Govind Ghilothia
नवंबर 6, 2025 AT 19:59इस बिल के विरुद्ध आंदोलन एक ऐतिहासिक आवश्यकता है। यह न केवल ऊर्जा के सामाजिक न्याय का प्रश्न है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की आत्मा के लिए एक परीक्षा है। यदि हम इस बिल को स्वीकार कर लें, तो हमने अपने नागरिक अधिकारों को बेच दिया।
Sukanta Baidya
नवंबर 6, 2025 AT 20:19अरे यार, बिजली का बिल 12,000 रुपये? तो फिर ट्यूबवेल बंद कर दो, और अपने घर में बर्फ बनाने की कोशिश करो। ये सब लोग बस फसल बेचकर जीवन जी रहे हैं, न कि बिजली बिल भरकर।
Ritu Patel
नवंबर 6, 2025 AT 22:50तुम सब बिजली के बिल की बात कर रहे हो, लेकिन क्या तुमने कभी सोचा कि बिजली चोरी करने वाले कितने हैं? जब तक हम अपने घरों की बिजली चोरी नहीं रोकेंगे, तब तक ये बिल ठीक है।
Deepak Singh
नवंबर 8, 2025 AT 17:29यह बिल असल में बिजली वितरण निगमों के घाटे को ढकने के लिए बनाया गया है - लेकिन इसके लिए बिजली चोरी, अनियमित बिलिंग, और राजनीतिक छूटों की जिम्मेदारी नहीं ली जा रही है। यह एक बहाना है - और यह बहाना गरीबों को दोष देकर अमीरों को बचाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है।
Rajesh Sahu
नवंबर 9, 2025 AT 19:14बिजली बंद करने की बात? अरे भाई, अगर तुम बिजली बंद करोगे तो मैं तुम्हारे घर के बाहर जाकर बिजली की डोरी काट दूंगा! ये सब नाटक है, लेकिन अगर सरकार ने बिल वापस नहीं लिया तो मैं भी बिजली काट दूंगा!
Dev Toll
नवंबर 11, 2025 AT 10:03मैं गोरखपुर से हूँ। मेरे पास एक 5 HP ट्यूबवेल है। अभी बिल 4,500 रुपये है। अगर ये बिल बढ़ गया तो मैं बस खेत छोड़ दूंगा। ये सिर्फ बिजली का मुद्दा नहीं - ये मेरी जिंदगी का मुद्दा है।
utkarsh shukla
नवंबर 12, 2025 AT 05:15हर किसान, हर कर्मचारी, हर मजदूर - अब एक हो जाओ! ये बिल हमारे लिए नहीं, बल्कि शेयरधारकों के लिए है। अगर हम एकजुट हुए तो कोई भी बिल नहीं चलेगा। आओ, अपने गांव से शुरू करें।
mala Syari
नवंबर 12, 2025 AT 09:28अरे यार, तुम सब बिजली के बिल की बात कर रहे हो... लेकिन क्या तुमने कभी सोचा कि तुम्हारा फोन चार्जर भी बिजली खा रहा है? अगर तुम इतने गरीब हो तो फोन बंद कर दो।
Kishore Pandey
नवंबर 14, 2025 AT 08:03यह बिल एक आर्थिक आवश्यकता है। बिजली वितरण निगमों का घाटा अस्वीकार्य है। निजीकरण के बिना, भारत की ऊर्जा व्यवस्था टूट जाएगी। गरीबों की सुरक्षा के लिए सरकार को उचित वितरण नीतियाँ बनानी चाहिए - न कि बिजली को निजीकरण से बचाना।
Kamal Gulati
नवंबर 15, 2025 AT 14:53मैंने देखा है - बिजली विभाग के अधिकारी अपने घरों में बिना बिल के बिजली ले रहे हैं। अगर वो अपने घर से शुरू करें, तो फिर बाकी सब को बिल भरना पड़ेगा। ये सब बहाना है।
Pankaj Sarin
नवंबर 17, 2025 AT 07:12बिजली बंद करो या बिजली बढ़ाओ - दोनों ही गरीब के खिलाफ है। लेकिन अगर तुम बिजली बंद कर दोगे तो फिर बात बदल जाएगी। देखो ना कौन डरता है।
Mahesh Chavda
नवंबर 18, 2025 AT 01:55इस बिल के खिलाफ आंदोलन एक ऐतिहासिक अवसर है। यह एक अलग तरह की राष्ट्रीय एकता का संकेत है - किसान, कर्मचारी, मजदूर। यह एक नए युग की शुरुआत है।
Sakshi Mishra
नवंबर 18, 2025 AT 02:02क्या बिजली एक मूलभूत अधिकार है? या यह एक व्यापारिक सामान है? अगर यह एक अधिकार है, तो क्या हम इसे बाजार के नियमों के अधीन कर सकते हैं? यह सवाल हमें सोचने पर मजबूर करता है - न कि बस बिल भरने पर।
Adrija Mohakul
नवंबर 19, 2025 AT 04:10मैं गोरखपुर के पास रहती हूँ। मेरे पापा के पास 7.5 HP ट्यूबवेल है। अगर बिल बढ़ गया तो वो खेत छोड़ देंगे। मैं जानती हूँ कि ये सिर्फ बिजली का मुद्दा नहीं - ये हमारी जिंदगी का मुद्दा है।
Dhananjay Khodankar
नवंबर 20, 2025 AT 04:27अगर बिजली बंद हो जाए तो लोग रात में बत्ती जलाएंगे? या फिर वो अपने घरों में चाँद की रोशनी में खाना बनाएंगे? ये सब बहुत आसानी से नहीं होगा - लेकिन अगर हम एकजुट हुए तो सरकार को सुनना पड़ेगा।
shyam majji
नवंबर 21, 2025 AT 18:38मैं तो बस देख रहा हूँ। लेकिन अगर ये बिल लागू हुआ तो मैं भी बिजली बंद कर दूंगा। जिस तरह से ये लोग बिजली चोरी कर रहे हैं - वो तो बहुत बड़ी बात है।