गुजरात हाई कोर्ट ने 'महाराज' फिल्म पर से स्टे हटाया
आमिर खान के बेटे जूनैद खान की डेब्यू फिल्म 'महाराज' पर लगी अस्थाई रोक को गुजरात हाई कोर्ट ने हटा दिया है और अब यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है। यह फैसला हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संगीता के. विशेन ने देते हुए कहा कि फिल्म का उद्देश्य किसी भी समुदाय की भावनाओं को आहत करना नहीं है।
फिल्म 'महाराज' को 13 जून को रिलीज होने से रोका गया था जब कुछ व्यापारियों के समूह ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने दावा किया था कि इस फिल्म के कुछ हिस्सों से वैष्णव समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विशेन ने फिल्म को खुद देखा और पाया कि यह 1862 के महाराज लिबेल केस पर आधारित है और किसी भी धार्मिक भावनाओं को आहत करने का कोई इरादा नहीं है।
फिल्म 'महाराज' की कहानी और इसे लेकर विवाद
फिल्म 'महाराज' का निर्देशन सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा ने किया है और इसे आदित्य चोपड़ा के प्रोडक्शन हाउस YRF एंटरटेनमेंट ने प्रोड्यूस किया है। इस फिल्म में जूनैद खान, जैदीप अहलावत, शर्वरी वाघ और शालिनी पांडे जैसे अदाकार हैं। फिल्म का मूल रिलीज़ डेट 14 जून था, लेकिन कोर्ट के स्थगन आदेश के कारण इसे टाल दिया गया।
फिल्म की कहानी 1862 के महाराज लिबेल केस पर आधारित है, जो कि उस समय के समाज में एक महत्वपूर्ण मुकदमा था। इस केस में धार्मिक गुरु महाराज ने एक पत्रकार के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था, जो उनके बारे में अपमानजनक लेख लिखता था। यह मामला उस समय के समाज में प्रसिद्ध हुआ था और कई बहसों का कारण बना था।
फिल्म के निर्माताओं और कलाकारों की प्रतिक्रिया
फिल्म निर्माताओं ने कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है और उनका मानना है कि यह सिनेमा की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। जूनैद खान, जिन्होंने इस फिल्म से अभिनय की दुनिया में कदम रखा है, ने कहा कि वह इस फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित थे और कोर्ट के फैसले से उन्हें बेहद खुशी मिली है।
फिल्म के निर्देशक सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा ने कहा कि उन्हें खुशी है कि कोर्ट ने फिल्म को सही समझा और इसे रिलीज की अनुमति दी। उन्होंने कहा कि यह फिल्म केवल मनोरंजन के लिए नहीं है बल्कि इसमें एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को भी दर्शाया गया है।
फिल्म निर्माताओं की अगले कदम
फिल्म 'महाराज' अब नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है और इसे दर्शकों से काफी अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। फिल्म निर्माताओं का कहना है कि वह आगे भी ऐसी ऐतिहासिक और समाजिक विषयों पर फिल्में बनाते रहेंगे, जो दर्शकों को ना केवल मनोरंजन प्रदान करें बल्कि उन्हें सोचने पर भी मजबूर करें।
यह मामला एक बार फिर सिनेमा की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व को उजागर करता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह के मुद्दों पर क्या रूख अपनाया जाता है। कोर्ट का यह फैसला अपने आप में एक नजीर बन सकता है और भविष्य में ऐसे मामलों में सहायक साबित हो सकता है।
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